आदिवासी के हक
आदिवासी के हक
असम राज्य में आदिवासी का एक अंश ईसाई ध्रर्म माननेवालों का है । इनकी और सरना धर्म के अनुयाइयों की भाषा, सांस्कृतिक तथा आर्थिक परिस्थितियां एक-सी हैं । इनकी कृषि एवं वासगित भूमि पर एक-दूसरे के साथ अभिन्न रुप से जुड़ी हुई है । कानूनी मामलों में भी वे एक समान ही हिन्दू उत्तराधिकार कानून के मातहत संचालित होते हैं । शिक्षा के मामलों में ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके आदिवासी आगे बढ़े हुए हैं। जिस समय भारतीय समाज में आदिवासियों को असभ्य,जगंली कहकर दूर रखा जाता था,उस समय ईसाई मिशनरियों ने उन्हें मनुष्य का दर्ज़ा देकर पढ़ना-लिखना सिखलाया था। इसका लाभ ईसाई आदिवासियों को मिला था। फलस्वरुप अन्य आदिवासियों की तुलना में आज वे अपना अगुआ स्थान बनाए हुए हैं। सरकारी कैडरों में आदिवासियों में से अधिकतर लोग ईसाई धर्म से आते हैं। इन सब बातों के होते हुए यह तथ्य निर्विवाद हैं कि आदिवासी जनता चाहे वह ईसाई हो या सरन, तमाम लोग आर्थिक, सामाचिक एवं सांस्कुतिक रुप से शोषित-पीड़त रहते हैं एवं उनका दमन, उत्पीड़न समान रुप से चलता है, जो आज तक समाप्त नहीं हुआ है। सरकारी नोकरियों मे आदिवासीयों में से अधिकतर लोग ईसाई धर्म से आते हैं । इन सब बातों के होते हुवे यह तथ्य निर्विवाद है कि आदिवासी जनता चाहे वह ईसाई हो या सरना, तमाम लोग आर्थिक, सामाजिक एवं उनका दमन, उत्पिड़न समान रुप से चलता है, जो आज तक समाप्त नहीं हुआ है ।
हमने अनेक हिंसक ऐतिहासिक मोड़ झेले हैं । बहुसंख्यक समुदाय के कट्टर धर्मगुरुओं द्वारा फैलाए गए क्रूर का शिकार आम जन बना है । कभी-कभी कईयों ने अपनी जमीन-जायदाद, घर-द्वार, गँवाकर एक से अन्य स्थान में जाकर अपने जीवान अस्तित्व को बचाया । काईयों ने तो अपना जमीन को खो भी दिया ।
अंग्रेजों के आगमन के साथ-साथ असम के आदिवासीयों के जीवान मे ऐसा ही एक संकट आया था । अंग्रेजों का इरादा था कि वे आिवासियों की भूमि-व्यवस्था एवं ग्राम-व्यवस्था को तोड़कर जमींदारी-व्यवस्था कायम करें । वे असम की धरती पर ऐसे नए शोषक एवं शाषक वर्गो को बाहर से लाकर प्रतिष्ठित करना चहते थे, जो अपना साधने के लिए जनता को दबाते रहे ही, अंग्रेजों का साथ भी देते रहे और साथ ही साथ वे जनता से टैक्स वसूल कर सरकार के पास पहुँचा भी दें । परन्तु परिस्तिति ऐसी नहीं हुई । उनको लगातार एक के बाद एक खूनी संघर्षों का सामना करना पड़ा ।
अंग्रेज जिस भुमि-व्यवस्था एवं प्रशासनिक-व्यवस्था को कयाम करना चाहते थे, इसे लेकर उनका आदिवासियों के साथ हर कदम पर टकराव होने लगा । असम की धरती घने जंगलों से भरी थी, उसमे हिंसक जंगली जानवारों का उपगद्रव था एवं आवागमन का रास्ता नही था । उस समय जंगलों को साफ कर उबड़-खाबड़ धरती को समतल बनाकर आदिवासियों ने ही सबसे पहले उसमे सुन्दर-सुन्दर गाँवों एवं कृषि भूमि का निर्माण किया था । मगर असम मे यह व्यवस्था भेड़ चराने के लिये भेड़यों की बहाली के बराबर थी । इसमे असम के कुछ मध्यभोगी लोग नियमीत मजिस्ट्रेट भी हुवा करते थे। यह व्यवस्था आदिवासियों का अधिकार एवं स्वतन्त्रता पर कुठाराघात थी । बहरी लोगों की क्रूर लालसाओं के करण आदिवासि लोग अपने गाँव छोड़कर नई जगह एवं जमीन खोजने के लिये जंगलों मे चले गए, जैसा की पिछले युगों मे वे करते आए थे और आज भी करते हैं । मगर अब वैसा जंगल नही रह गया है । उनके समने अब भूखों मरने अथवा अपनी धरती पर गुलाम बनकर रहने य़ा करीब-करीब उपवास रहकर जिन्दा रहने के सिवाय दूसरा रास्ता नही बचा है ।
जब गाँवों से सामुदायिक व्यवस्ता को नष्ट कर दिया गया तो दुश्मनों ने आदिवासि को भूईहारी एवं राजहस जमीने, (जो वे जोत रहे थे), से हटने के लिये प्रयास किया ।
इस तराह असम की आज का चित्र देखने से पता चलता है, जो असम के जितने भी बड़े-बड़े नगर है वह आदिवासियों ने ही नगर बनाने की लयाक बनाया है । असम मे असमिया भाषा प्रचलन एवं भाषा शिखने मे आदिवासि सामूदय का बहुत बड़ा अवदान है, इस बत को नकारा नहीं जा सकता ।
भारत के लोग अधिकतर अनुसूचित जनजातियों (एस.टि) को आदिवासि कहते हैं। संस्कृत में आदिवासि शब्द का अर्थ है, किसि क्षेत्र के मूल निवासी जो आदिकाल से किसि स्थान विशेष में रहते चले आ रहे हैं । फिर भी असम क्षेत्र मे आजतक आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की दार्जा नहीं दिया गया हैं ।
जिन आदिवासियों ने असम का सांस्कृतिक क्षेत्र समृद्ध किया उन्हीं आदिवासियों को अपने पेट की खातिर जंगल-जंगल मारे-मारे भटकना पड़ता है ।
Jai Adivasi
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